Saturday 4 April 2015

SHRI VEDMATA DEVMATA VISHWAMATA GAYATRI SAHKARI PARIWAR

ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमही धियो यो नः प्रचोदयात् ! 


सभी जानते है कि आधुनिक युग विज्ञान के प्रगति का युग है विज्ञान ने इस समय जितनी उन्नती की है उतनी शायद पहले कभी नही हुई नाना प्रकार के यंत्रो - मोटर ,कार ,वायुयान ,रेल ,बिजली ,टेलिविजन, मोबाईल, कम्पयुटर, रोकेट , विध्वंशकारी भयानक मिशायल, गोली, बम , बारुद ,एटमबम आदि.. आदि। के नित्य दिनदुनी रातचैगुनी निर्माण हो रहे है । आज मनुष्य इतनी बिपुल साधनो से युक्त है कि वे सर्वाधिक सुखी एवं शांतिपूर्ण होता। परंतु यदि देखा जाए तो वह पहले से कहीं और अशांत ,दुखी , भयग्रस्त अकेला एवं असहाय होता चला जा रहा है फलतः अकथनीय क्लेश से व्यथित हो दुख पा रहे है।
              इसलिए यह जनना , खोजना ,विचारना आवश्यक है कि सुख शांति एवं आन्नद का मूल आधार एवं स्त्रोत क्या है ?कहां है ? और उसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? और इन सभी जिज्ञासायों का समाधान हमें प्राप्त होती है स्वयं ‘आत्मा’ को जानने ,अनुभव करने और निर्माण से ।जिस पर प्राचीन तपस्वी ऋषि मुनियों लंबे समय तक शोध अनुसंधान के पश्चात विस्तृत एवं श्रेष्ठ आत्मविज्ञान का उपदेश दिया जिसका आधार है- साधना । इस श्रेष्ठ आत्मविज्ञान के ज्ञाता एवं उपासक होने के करण सतयुग ,द्वापर ,त्रैता आदि युगों के व्यक्ति अपेक्षाकृत कम भौतिक साधनो मे भी अधिक सुखी एवं शांतिपूर्ण थे। 
   अतः आज यह समय की मांग है कि पुनः अध्यात्म को जन जन तक पहुचाया जाय उसके महता से अवगत कराया जाय वास्तविक सुख शांति एवं समद्धि के लिए भौतिक ज्ञान विज्ञान के साथ अध्यात्म विज्ञान का अध्ययन अनुपालन आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है।    

उद्देश्य -

युग निर्माण योजना ‘‘ मनुष्य मे देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण  को सकार करने हेतू सक्रिय कर्मठ प्रज्ञा परिजनों का संगठित समूह ।

मनुष्य में सदविचार सदाचरण एवं देवत्व के अभ्युदय के लिए धर्मतंत्र से लोकषिक्षण , जन जागरण ,युग साहित्यों (विचारों) का विस्तार।

मनुष्यमात्र के भौतिक उन्नति ,सपन्नता ,सुरक्षा,सुख एवं शांति हेतू - सप्त आंदोलनों (साधना,शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन , पर्यावरण, कुरिति उन्मुलन ,एवं नारी जागरण आंदोलन) का संगठित एवं व्यवस्थित संचालन ।



गरीबी , उंच-नीच , भेद भाव ,अशिक्षा ,दहेज ,भ्रष्टाचार , असुरक्षा , आदि से पुर्णतः  मुक्त हो दिव्य आन्न्दमय स्वर्गीय जीवन की संरचना ।

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